Karwa Chauth Vrat 2024: करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत पतिव्रता स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। करवा चौथ का पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसकी महत्ता पूरे देश में देखी जा सकती है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा को देखकर व्रत खोलती हैं। आइए जानें करवा चौथ 2024 में कब है, पूजा मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।
करवा चौथ 2024 में कब है?
Karwa Chauth Kab Hai : करवा चौथ 2024 का व्रत इस बार 20 अक्टूबर 2024, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं दिनभर व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करेंगी।
करवा चौथ 2024 का पूजा मुहूर्त | Karwa Chauth Puja Muhurat
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय के समय पूजा की जाती है। 2024 में करवा चौथ पर चंद्रमा का उदय समय लगभग रात 8:23 बजे होगा। इस समय के आसपास महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर और अपने पति का चेहरा देखकर व्रत खोलेंगी।
- करवा चौथ पूजा मुहूर्त: 6:09 PM से 7:24 PM
- चंद्रोदय का समय: 8:23 PM
करवा चौथ व्रत की पूजा विधि (Puja Vidhi)
करवा चौथ की पूजा विधि बहुत ही पवित्र और विशेष होती है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और सुहाग का सामान धारण करती हैं। आइए जानते हैं करवा चौथ की पूजा विधि के बारे में:
- व्रत प्रारंभ: सुबह सूर्योदय से पहले महिलाएं सरगी खाती हैं, जिसे उनकी सास द्वारा दिया जाता है। इसके बाद महिलाएं पूरे दिन बिना पानी और अन्न के व्रत करती हैं।
- पूजा स्थल की तैयारी: संध्या के समय महिलाएं करवा चौथ की पूजा करने के लिए एक स्थान पर एकत्र होती हैं। वहाँ भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। साथ ही करवे (मिट्टी के बर्तन) की पूजा की जाती है।
- करवा चौथ कथा का श्रवण: पूजा के दौरान सभी महिलाएं करवा चौथ व्रत की कथा सुनती हैं। यह कथा सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
- चंद्र दर्शन: रात को चंद्रमा के उदय होने के बाद महिलाएं छलनी से चंद्रमा और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद पति अपने हाथों से उन्हें जल पिलाकर व्रत खोलते हैं।
- अन्न ग्रहण: चंद्र दर्शन और अर्घ्य देने के बाद महिलाएं व्रत खोलती हैं और भोजन ग्रहण करती हैं।
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करवा चौथ व्रत कथा (Vrat Katha)
करवा चौथ व्रत की कई कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कथा वीरवती की है। यह कथा कुछ इस प्रकार है:
पुराने समय में वीरवती नाम की एक सुंदर और धार्मिक स्त्री थी। वह अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। विवाह के बाद उसने अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। व्रत के दौरान वह अपने भाइयों के घर गई। वीरवती भूख और प्यास से अत्यंत कमजोर हो गई, जिससे उसके भाइयों को उसकी चिंता होने लगी। भाइयों ने उसकी इस हालत को देखकर चंद्रमा के उदय होने से पहले ही एक पेड़ के पीछे से दीपक की रोशनी दिखाई और कहा कि चंद्रमा उदय हो गया है। वीरवती ने चंद्रमा समझकर अर्घ्य दिया और व्रत खोल लिया।
लेकिन जैसे ही उसने भोजन किया, उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। वह अत्यंत दुखी हुई और भगवान से प्रार्थना करने लगी। उसकी भक्ति और सच्चे प्रेम को देखकर माता पार्वती ने उसकी मदद की और उसे करवा चौथ का व्रत विधिपूर्वक करने का उपाय बताया। वीरवती ने पूरे विधि-विधान से दोबारा व्रत किया, जिससे उसके पति को पुनः जीवन प्राप्त हुआ।
इस कथा का महत्व यह है कि यह व्रत स्त्रियों के अटूट प्रेम, भक्ति और उनके पति के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
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करवा चौथ की कहानी PDF Download
एक बार की बात है। एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी का विवाह हो चुका था, बेटी अपने मायके में आयी थी। बेटी का नाम करवा था। सातों भाई अपनी इस इकलौती करवा बहन को बहुत गहरा प्रेम करते थे। अपनी बहन का पूरा ध्यान रखते है। जब करवा मायके में आयी हुई थी तो एक दिन शाम को सभी भोजन करने के लिए बैठे। कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी। अतः घर में साहूकार की सभी बहुओं ने और साहूकार की बेटी करवा ने चतुर्थी/ चौथ का व्रत रखा हुआ था।
जब साहूकार के सभी बेटे भोजन के लिए बैठे तो उन्होंने अपनी बहन को भोजन करने के लिए कहा। भाइयों का भोजन करने के लिए बुलाने पर बहन ने कहा- भाई, अभी चाँद नहीं आया है। जब चाँद आ जाएगा तब मैं चाँद को अर्घ्य देकर व्रत पूरा करके ही भोजन करुंगी। करवा के ऐंसा कहने पर भाइयों को चिन्ता हुई कि बहन भूखी है और अभी चाँद भी नहीं आया है।
ऐंसे में सात भाइयों में से सबसे छोटा भाई बाहर किसी दूर के पेड़ पर जाकर उसमें अग्नि जलाकर उसमें एक छलनी लगाकर बहन के पास आया और बहन को कहने लगा- देखो बहन चाँद आ गया है। अब खाना खा लो। बहन ने अपनी भाभियों को भी कहा- भाभी देखो चाँद निकल आया है। अब आप लोग भी अर्घ्य देकर व्रत पूरा करके भोजन कर लो। भाभियों ने ननद करवा की बात सुनकर कहा- ननद, ये चाँद तुम्हारा आया है। हमारा नहीं।
ऐंसा कहने के बाद यह करवा अकेले ही भोजन करने के लिए बैठ जाती है और जैंसे ही भोजन का पहला ग्रास अपने मुंह में लेती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा ग्रास मुंह में लेती है तो उसमें बाल निकल जाता है। इसके बाद जैंसे ही भोजन का तीसरा ग्रास मुंह में लेने को रहती है तो उसी समय उसके ससुराल से न्योता आता है कि उसके पति का स्वास्थ्य बहुत खराब है।
वह शीघ्र पति को देखने ससुराल आ जाए। इसके बाद उसकी भाभी उसे सच्चाई बताती हैं कि उसके साथ ऐंसा इसलिए हुआ क्योंकि उसने करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया था। उसके भाइयों ने आग जलाकर झूठ कहा कि चाँद निकल गया और उसने सच मानकर अपना व्रत तोड़ दिया। इसी कारण उसका पति बीमार हुआ। सच्चाई जानने के बाद जब करवा अपने ससुराल को जाती है और यह प्रतिज्ञा करती है कि मैं अपने पति को कुछ नहीं होने दुंगी।
दुर्भाग्यवश, जब करवा अपने ससुराल पहुँचती है तो उसका पति प्राण छोड़ चुका होता है। पति के प्राण चले जाने पर करवा अपने दुःख को सहन नहीं कर पाती है और सभी से कहती है कि मैं अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दुंगी। मैं अपने पति से दूर नहीं रह सकती। मैं एक पतिव्रता और सतीत्व की शक्ति से अपने पति के प्राणों को वापस लाउंगी। करवा की इन बातों को सुनकर सब उसे पागल-पागल कहने लगते हैं और करवा के पति को श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं।
करवा भी अपने हठ और पति के वियोग में श्मशान में चली जाती है और वंहा सबको अपने पति की चिता जलाने से इन्कार करती है। करवा की बार-बार जिद करने पर सभी पारिवारिक लोग करवा की बात मान लेते हैं और करवा के पति का अंतिम संस्कार नहीं करते हैं। सब घर चले जाते जाते हैं। करवा अपने मृत पति को लेकर दूर कंही एक झोपड़ी में रहने लगती है और अपने पति को जीवित करने के लिए भगवान की पूजा व्रत आदि करने लगती है। एक साल बीत जाता है।
करवा उसी दिन का इंतजार करती है जब उसने अपने मायके में चतुर्थी का व्रत तोड़ा था। एक वर्ष बीतने के बाद जब फिर से वही कार्तिक मास की चौथ (चतुर्थी) का दिन आता है तो करवा अपने पति के प्राणों के लिए निर्जला करवा चौथ का व्रत रखती है। करवा अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए माँ जगदंबा से प्रार्थना करती है कि मेरे पति के प्राणों को वापस लायें। मुझे मेरा सुहाग वापस लौटाएं।
जब करवा का यह व्रत पूरा होने को रहता है तो उसके व्रत से माँ प्रसन्न हो जाती है और उसे कहती है कि यदि तुम अपने पति के प्राणों को वापस पाना चाहती हो तो अपनी सबसे छोटी भाभी के पास जाओ। वही तुम्हारे पति के प्राणों को वापस ला सकती है क्योंकि करवा का व्रत तोडने का कारण उसका सबसे छोटा भाई ही था। उसी ने पेड़ पर अग्नि जलाकर बहन को झूठ कहा था कि चाँद आ गया है।
अतः करवा अपनी सबसे छोटी भाभी के पास जाती है और उनके पांव को पकड़कर कहने लगती है कि मुझे मेरा सुहाग वापस दिलवा दो। बार-बार कहने से करवा की भाभी अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उससे रक्त अमृत निकालती है और करवा के पति के मुंह में डालती है।
ऐंसा करने पर करवा का पति- “जय गणेश, जय गौरी, जय गणेश, जय गौरी” कहता हुआ पुनर्जीवित हो जाता है। इस प्रकार भगवान की कृपा से करवा का पति वापस आ जाता है तब करवा माँ गौरी से प्रार्थना करती है कि हे माँ गौरी, जिस प्रकार आज आपने इस करवा को फिर से सुहागन बनाया और चिर सुहागन का वरदान दिया ठीक उसी प्रकार, हे माँ! सभी स्त्रियों को सुहागन का वरदान मिले।
निष्कर्ष :
करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच के प्रेम और विश्वास का पर्व है। इस दिन महिलाएं न केवल अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, बल्कि अपने परिवार की समृद्धि और सुख-शांति के लिए भी प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे हर सुहागिन महिला अपने जीवन में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ करती है।